Sunday, February 21, 2016

परिवर्तन...

परिवर्तन,
ये शब्द और इसका निर्माण
उतना ही सहज है
जितना सुबह के बाद शाम,
शाम के बाद रात,
इसमें कुछ भी अजीब नहीं
कुछ भी असंभव नहीं...

जो आज है वो कल नहीं होगा
जो कल है वो आज नहीं हो सकता,
जिससे आप आज प्रेम करते हैं
उसका बदलना अवश्यम्भावी है,
प्रेम न बदले उसका भार
अपने अंदर के परिवर्तन को उठाना होगा...

परिवर्तन, आज मुझमे है कल सबमे होगा,
सब के पैर परिवर्तन की धुरी पर हैं...

Thursday, February 11, 2016

दर्पण के नियम...

मैं खुद को आवाज़ लगता हूँ हर बार,
और मेरी आवाज़ मुझसे ही टकराकर
वापस लौट आती है,
काश कि आवाज़ आ पाती
दर्पण के परावर्तन के नियम के खिलाफ,
मेरा दिल इस दर्पण का आपतन बिन्दु है...

याद रखना अगर मैं घूमा लूँ
अपना दिल किसी थीटा कोण से,
मेरी आवाज़ की परावर्तित किरण
इकट्ठा कर लेगी दोगुना घूर्णन,
ये हर दर्पण का प्रकृतिक गुण है....

मेरा ये दिल दर्पण ही तो है तुम्हारा,
है न...
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