Monday, January 19, 2015

नींद जो ख़्वाब में आती है...

जागती आँखों के सपने
अक्सर मुझे परेशान करते हैं,

मैं सोना चाहता हूँ
हवा में औंधे मुंह किए
गुरुत्वाकर्षण के नियम के खिलाफ,
चाहता हूँ कि
ख़्वाब में आए नींद का झरोखा कोई,
घड़ी का चलना भी
डायल्यूट हो जाये
मेरी साँसो की तरह...

खुद से लड़ते झगड़ते हुये
कई बातें जो मैं भूल चुका हूँ
उन बातों की अधूरी लिस्ट को भी
Shift+Delete कर देना चाहता हूँ,

अगर जो सुकून और खुशी
अब इन कंक्रीट के जंगलों में ही
मिलते हों तो,
डूबते हुये नारंगी सूरज का जो लम्हा
कैद है मेरी इन आँखों में 
उसे भी मैं इन ऊंची इमारतों के अंदर ही
जमा देना चाहता हूँ सीमेंट से
हमेशा हमेशा के लिए... 

Sunday, January 18, 2015

छोटा सा लम्हा...

कभी-न-कभी
हम कलैंडर के
उस पन्ने पर पहुंचेंगे
जब तकिये पर अटकी
उन आखिरी झपकियों के सहारे,
हम देख रहे होंगे
अपनी ज़िंदगी के कुछ आखिरी सपने,
हमारे सपने यहीं रहेंगे,
इसी धरती पर
चाहे हम रहें न रहें.... 

Saturday, January 17, 2015

मैं तब भी यहीं मिलूंगा...

क्या तुमने सोचा है कभी
कोई ऐसा दिन
जब मैं कहानियाँ कहता हुआ
खुद कहानी बन कर रह जाऊंगा,
जब ये रेंगता हुआ वक़्त
मुझे फांक कर निगल जाएगा,
जब मेरी उन साँसो की गुल्लक से
ज़िंदगी के सिक्के बिखर रहे होंगे,
चेहरे पर बढ़ती
सफ़ेद दाढ़ियों के पीछे से
झांकेंगी कुछ ढुलकती झुर्रियां... 

शरीर की बची हुयी गर्मी से
मैं ताप रहा हूंगा
कुछ बचे हुये पल...

उस क्षण में भी
मैं लिखते रहना चाहता हूँ
बस एक आखिरी कहानी,
क्यूंकी मुझे यकीन है
कि जब तक मैं लिखता रहूँगा
वो कहानियाँ मेरा होना सँजोये रखेंगी...

मैं ज़िंदा रहूँगा
और सांस लेता रहूँगा
इन्हीं कहानियों के पीछे... 

Thursday, January 15, 2015

बैकस्पेस ⬅

कीबोर्ड पर खिटिर-पिटिर करके
जाने कितने अफसानो को
हवा दी थी कभी,
कीबोर्ड का हर एक बटन
मेरे सुख-दुख का
साझीदार हुआ करता था...

वो बटन अब मुझे
दफ्तर में मिलते हैं
मैं उनसे अब न जाने
क्या-क्या लिखवाता रहता हूँ
उन टाइप किए शब्दों से अब
ज़िंदगी की खुशबू नहीं आती
कुछ बेजान से कोड और स्क्रिप्ट या फिर
कभी किसी एक्सेल पन्ने को भरते हुये,
मेरी ही तरह
इस कीबोर्ड को भी
घुटन तो होती होगी न...
ज़िंदगी के मेरे इन दो पहलुओं
के बीच "स्पेस" बटन जितना
फासला हो गया है...

फिर कभी जब खुद को फुसला कर 
बैठता हूँ कि
लिखूँ कुछ ज़िंदगी के बारे में
तो हर बार लिखकर
मिटा दिया करता हूँ,
अपने लिखे से
मैं खुद संतुष्ट नहीं हूँ आज-कल,
इन दिनों "बैकस्पेस" बटन से
दोस्ती कुछ ज्यादा ही गहरी हो गयी है...

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