Friday, August 24, 2012

मुझे मत ढूँढना...

मुझे इन पन्नो पर मत ढूँढना,
यहाँ तो केवल मेरे कुछ पुराने शब्द पड़े हैं
वो शब्द जो मैं अक्सर
इस्तेमाल कर किया करता था,
वो शब्द जो कभी बयान करते थे
मेरी खामोशियाँ, मेरी तन्हाईयाँ...
वो अब पुराने पड़ चुके हैं
अपना वजूद खो चुके हैं...

मुझे इन हथेलियों पर मत ढूँढना,
यहाँ तो बस
कुछ आरी-तिरछी लकीरें हैं मेरी
जिनके सहारे कभी
मेरा नसीब चला करता था
ये लकीरें अब धुंधली पड़ चुकी हैं
उनसे मेरा अब कोई जुड़ाव नहीं....

मैं तुम्हें कहीं नहीं मिलूंगा,
मैं तो कब का निकल चुका हूँ
अपने अकेलेपन को ज़मीन के किसी कोने में दबाकर,
अपनी इस उदास सी रूह को समेटकर
इस बेदिल दुनिया से बहुत दूर,
किसी निर्जन स्थान पर...

Sunday, August 19, 2012

एक बात जो कहनी है तुमसे ...

जाने क्यूँ अतीत का ये पन्ना इतना बेचैन सा है, हर शाम हवा के धीमे से थपेड़े से भी परेशान होकर फडफडाने लगता है... आज उस पन्ने को खोलते हुए एक सुकून सा लग रहा है...
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वो पल अक्सर ही मेरी आखों के सामने आ जाया करता है, जब तुम्हें पहली बार देखा था... उस समय तक तो तुम्हारा नाम भी नहीं जानता था, ये भी नहीं कि तुम्हारी ज़िन्दगी के ये खुरदुरे से खांचे मुझे अपने पास खींच ले जायेंगे... उस समय तक तुम मेरे लिए बस एक ख्याल थीं, बस एक चेहरा जिसपर मैंने उस दिन उतना ध्यान भी नहीं दिया था... बात आई-गयी हो गयी थी... यूँ कभी तुम्हारे बारे में कभी कुछ सोचा भी नहीं... फिर पता नहीं कैसे वो चेहरा मेरे ख्यालों के इतना करीब आ गया कि उसने मेरे सपने में दस्तक दे दी... न ही ये आखें वो सपना भूल सकती हैं और न ही उसमे दिखती तुम्हारी वो रोती हुयी भीगी पलकें... अगली सुबह मैं भी बहुत बेचैन सा हो गया था, सोचा जल्दी से तुम्हें एक झलक बस देख भर लूं, कहीं तुम कोई जानी पहचानी तो नहीं.... काफी देर तक याद करता रहा कि कहीं तुम्हें पहले देखा तो नहीं... अपनी ज़िन्दगी की किताब को लफ्ज़-दर-लफ्ज़ सफहा-दर-सफहा पलटता रहा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था, तुम तो बिलकुल नयी सी थी मेरी ज़िन्दगी में... फिर अचानक से तुम्हारा ये चेहरा भला क्यूँ मेरे आस-पास से गुजरने लगता है...
सोचा अगले दिन तुमसे बात करूंगा, तुमसे तुम्हारा नाम पूछूंगा... लेकिन इतनी हिम्मत जुटा पाना शायद मुश्किल ही था... तुम अब एक पहेली ही थी मेरे लिए... बस आते जाते नज़रें चुराकर तुम्हें देख भर लिया करता था, अब तक तो तुम्हारा नाम भी पता चल गया था... और भी बहुत कुछ समझने की कोशिश करता रहता था... पता नहीं ये मेरा भ्रम था या और कुछ लेकिन मुझे तुम्हारे आस -पास दूर तक पसरा हुआ एकांत नज़र आता था... जैसे अकेले किसी अनजान से सफ़र पर हो... लगता था जैसे तुम्हें किसी दोस्त की ज़रुरत हो, मैं तुम्हारे उस एकांत को अपनी दोस्ती से भर देना चाहता था...
वो रातें अक्सर उदास होती थीं, उनमे न ही वो सुकून था और न ही आखों के आस पास नींद के घेरे... बस गहरा सन्नाटा था... हर सुबह उठकर बस तुम्हें एक झलक देख भर लेने की हड़बड़ी... तुम जैसे मुझसे नज़रें बचाना चाहती थी, हमेशा दूर-दूर भागते रहने की कोशिश... तुम्हारी ज़िन्दगी में पसरे उस एकांत और उदासियों का हाथ पकड़कर मैं तुम्हारे शहर से कहीं दूर छोड़ आना चाहता था... तुम्हें ये बतलाना चाहता था कि नींद आखिर कितनी भी बंजर क्यूँ न हो उसपे कभी न कभी किसी सुन्दर से ख्वाब का फूल खिलता ज़रूर है... तुम्हारी इन परेशान सी पलकों तले तुम्हारे लिए खूबसूरत ख्वाबगाह बना देना चाहता था... पर अब तक तुमने मुझे इसकी इजाजत नहीं दी थी...
मेरे दोस्त इसे कोई प्रेम कहानी समझने की भूल कर बैठे थे, उस समय तक तो मैं तुम्हें जानना भर चाहता था, तुम्हारी ज़िन्दगी की दरो-दीवार पर लिखे चंद लफ्ज़ पढना चाहता था... एक तड़प सी थी, एक बेचैनी... ठीक वैसे ही जैसे कोई चित्रकार अपने सामने पड़े खाली कैनवास को देखकर बेचैन हो उठता है... तुम्हारे अन्दर उस उदास, तन्हा इंसान में अपने आप को देखने लगा था... मैं किसी भी तरह तुम तक पहुंचना भर चाहता था...
हाँ ये सच है कि उस समय तक मुझे तुमसे प्यार नहीं था, लेकिन प्यार से भी कहीं ज्यादा मज़बूत एक धागा जुड़ गया था तुम्हारी ज़िन्दगी के साथ... जैसे एक मकसद, एक ख्वाईश.... तुम्हें हमेशा खुश रखने की, तुम्हें दुनिया की सारी खुशियाँ देने की... किसी का ख़याल रखने और उसको हमेशा खुश देखने की किस परिधि को प्यार कहते हैं ये मुझे कभी समझ नहीं आया... लेकिन तुम्हारे सपनों को सहेजते सहेजते बहुत आगे निकल गया... जब इस बात का एहसास हुआ तब अचानक ही जैसे आस-पास सब कुछ थम सा गया... काफी देर तक कमरे में खामोशियाँ चहलकदमी करती रहीं... गौर से अपनी ज़िन्दगी की सतहों पर देखा तो उनपर तुम्हारे नाम का प्यार अनजाने में ही पसर चुका था... मुझे तुमसे प्यार हो गया था, तुम्हारे बिना जीने की सोच से भी डर लगने लगा था...मेरे पास खुश होने की कई वजहें थीं लेकिन मैं उदास था... उदास इसलिए कि अब तुम्हें खो देने का डर सता रहा था....

Monday, August 13, 2012

कभी कतरा-कतरा करके भी कुछ लिखता हूँ ...

यादों की परतें इतनी पतली होती हैं न की अगर कभी किसी ने किसी एक परत को छू भर लिया तो ज़िन्दगी की इस किताब में से यादों की परतें उधडती चली जाती है... आस पास एक गहरा सन्नाटा छा जाता है, उस सन्नाटे में से कभी किसी के रोने की आवाजें आती हैं तो कभी किसी की मासूम सी खिलखिलाहट... उन यादों के गलियारों में कितना कुछ होता है, अब जैसे वो सब कुछ किसी बीते युग जैसा लगता है.... न जाने कितने ही ऐसे लोग हैं जो उस वक़्त अपनी ज़िन्दगी जैसे लगते थे और पता नहीं कब जाने कौन से मोड़ पर पीछे छूट गए...

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कभी-कभी यूँ ही अचानक बैठे-बैठे मन उदास सा हो जाता है, कोई कारण समझ नहीं आता... आस-पास की भीड़ को देखकर मन उचाट हो जाता है... किसी से बात करने का दिल नहीं करता... बस सोचता हूँ काश कोई अपना सा आ जाए जिसकी गोद में सर रखकर सो जाऊं... ऐसे में अक्सर कानों में इयरफोन लगाकर धीमी आवाज़ में कुछ सैड सौंग्स सुनता हूँ... सोने की एक नाकाम सी कोशिश करता हूँ, मोबाईल में कुछ तस्वीरों को पलटता हूँ... और अनजाने में ही आंसू की कुछ बूँदें धीमे से आखों की कोर से लुढ़क जाती हैं....

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मेरी बस हर रोज उसी तरफ से गुज़रती है, उन मुर्दा पत्थरों पर खुदे कुछ नाम और उनसे झांकते कुछ चेहरे...कुछ एक तो जैसे पहचानने सा लगा हूँ जैसे कभी मिला हूँ उनसे... इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी से होकर उन पत्थरों में खुदे नाम भर बन जाने के सफ़र में हम कितना कुछ पाते हैं, कितना कुछ खो जाते हैं... इस सफ़र में न जाने कितने सपने, कितना कुछ पाने की जद्दोजहद... उन पत्थरों के नीचे दफन होंगे न जाने कितने सपने, कितनी कहानियां और न जाने कितने ही अपनों की चीखें ... ( Adugodi, Bangalore के एक Chirstian Cementry की तरफ से गुज़रते हुए.... )

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कुछ बातें, कुछ सपने, कुछ इंसान और भी न जाने क्या क्या... बहुत कुछ ऐसा होता है जो भुलाए नहीं भूलते... इंसान की सोच इतनी खुरदरी होती है न कि काफी कुछ फंसा रह जाता है... भूलने और याद रखने के बीच का ये गलियारा जहाँ हर परछाईं से हम बचना चाहते हैं, लेकिन ऐसा कर नहीं पाते...

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पागलखाने के एक सूने से खाली कमरे के कोने में एक लड़का बैठा है, दीवार पर कुछ-न-कुछ उकेरता ही रहता है... शायद कहानियां हैं उन अधूरे से सपनों की, जिनके सच होने की राह वो आज तक देख रहा है, हर थोड़ी देर बाद वो दरवाज़े की तरफ देखता है... कुछ जाने पहचाने चेहरों की तलाश में... उसकी आखें थकी थकी सी लगती हैं लेकिन उसके अन्दर से झांकता इंतज़ार कभी ख़त्म नहीं होता... बस एक प्रश्नवाचक निगाहें ऊपर आसमान की तरफ उठती हैं जैसे ये पूछ रही हों... और कितना इंतज़ार... !!! ( एक कभी न समझ आने वाले सपने के गलियारे में झांकते हुए ...)

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